पंकज चतुर्वेदी-
आप दस साल मुखर्जी नगर में चप्पल घिसो। घर से पैसा मंगवा कर दड़बे जैसे फ्लेट में रात काली करो। कॉरपोरेट से लोग आएंगे और सीधे जे एस अर्थात संयुक्त सचिव स्तर पर औहदा पाएंगे। यह पोस्ट का कोटा कटेगा प्रारंभिक एंट्री से। फिर जो कम से कम 15 साल सेवा कर प्रमोशन के स्तर पर आएगा, वहां पहले से सीधे आये लोग बैठे होंगे।
कुछ महीने पहले ऐसी कुछ नियुक्तियां हो भी चुकी है। जान लें अब यह प्रशासनिक सेवाओं को भी उसी तरह पंगु बनाने की तैयारी है जैसे कि पहले से संसद और काफी कुछ न्याय प्रणाली का हाल है।
उर्मिलेश-
अभी तक देश की किसी प्रमुख पार्टी ने सरकार की Lateral Entry Appointment policy का पुरजोर ढंग से विरोध नहीं किया है! क्या यह भी सरकार का आंतरिक मामला है? क्या इसमें संविधान के प्रावधान या नियुक्तियों में निष्पक्षता और पारदर्शिता के उसूल भी बाहरी या विदेशी तत्व बन गये हैं?
इस बार केंद्र सरकार Lateral Entry जैसे विवादास्पद माध्यम से संयुक्त सचिव और निदेशक पद के लिए 30 नयी नियुक्तियां करने जा रही है. भारत सरकार में संयुक्त सचिव और निदेशक जैसे पदों पर हाल तक सिर्फ संघ लोक सेवा आयोग(UPSC) की परीक्षाओं से चयनित IAS Officers ही नियुक्त होते रहे हैं. इन परीक्षाओं में संवैधानिक बाध्यताओ के चलते सरकार को आरक्षण के प्रावधान लागू करने पडते थे. लेकिन Lateral Entry में ऐसी कोई बाध्यता नहीं रहती.
इससे पहले भी मौजूदा सरकार ने इस तरीके से संयुक्त सचिव स्तर के 9 पदों पर नियुक्तियां की थीं. बीच में कुछ और नियुक्तियां भी होती रहीं. जाहिर है, शुरुआती दौर की नियुक्तियों में किसी वैधानिक घोषणा के बगैर सामान्य कहे जाने वाले उच्च वर्ण के लोगों के लिए 100 फीसदी आरक्षण लागू किया गया था. इस बारे में सरकार ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि इन नियुक्तियों में आरक्षण नियमों का पालन नही होता!
देखिये, इस बार क्या होता है? बहरहाल, कोई अन्य वर्ग से नियुक्ति पायेगा भी तो उसका सत्ताधारी-खेमे की पसंद होना अनिवार्य होगा!