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इस 35 वर्षीय महिला की आत्महत्या समूची मानव जाति के लिए चिंता का विषय क्यों है?

वाराणसी : बीते रविवार को यहाँ के मेंटल अस्पताल में प्रशासन की लापरवाही के चलते बाइपोलर डिसआर्डर से ग्रस्त 35 वर्षीय महिला ने आत्महत्या कर ली। वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सकों का स्पष्ट मत है कि 2-3 महीने तक लगातार मूड स्टैबलाइजर पर अगर किसी मरीज को रखा जाता है तो कोई कारण नहीं कि वह आत्महत्या करे। जाहिर है कि मरीज को दवा देने में लापरवाही हुई है क्योंकि अस्पताल में स्टाफ बहुत ही कम है।

बाइपोलर की दवाओं को मूड स्टैबलाइजर कहा जाता है। मेंटल अस्पताल के डॉक्टर अजय कुमार सिंह फोन पर बता रहे थे कि उनके यहाँ अधिकतर मरीजों को डिवालप्रोएक्स सोडियम दी जाती है जो कि FDA एप्रूव्ड दवा है। मरीज-चिकित्सा पेशेवर भलीभाँति जानते हैं कि अगर कोई मरीज इस दवा पर है तो वह मेजर डिप्रेसिव डिसआर्डर में जा ही नहीं सकता कि आत्महत्या करने जैसा अतिवादी कदम उठाए।

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इस दवा के अलावा दूसरी कोई भी दवा बाइपोलर के MDD वाले फेज के लिए प्रभावी नहीं है। चूक कहाँ हुई है, इसका पता लगाया जाए।

कैंसर तक का पेशेंट कम से कम अपनी पीड़ा का तो बयान कर सकता है और मदद मांग सकता है लेकिन मेंटल पेशेंट नहीं। तमाम सभ्य देशों में बाइपोलर को अपंगता की कैटेगरी में रखा गया है।

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कहा जा सकता है कि एकमात्र मूड स्टैबलाइजर ही बाइपोलर में प्राणबचाऊ है, चिकित्सा पेशेवरों के पास अधिक विकल्प नहीं हैं। एंडोऑक्सिफेन की सरकारी आपूर्ति तुरंत शुरू किए जाने की जरूरत है ताकि पगलाने वाले मरीजों को शांत रखा जा सके। इसी तरह से डेविगो को भी फ्री में उपलब्ध करवाया जाए, ताकि अस्पताल में भर्ती मेंटल पेशेंट सो सके। कायदे से सोएगा तो अगले दिन उत्पात नहीं मचाएगा।

अगर उस मरीज की हालत बहुत खराब थी और वह MDD से ग्रस्त थी तो क्या उसे डिवालप्रोएक्स सोडियम पर रखा गया था? यदि हाँ तो फिर पता लगाया जाना चाहिए कि कहीं सप्लाई की जाने वाली दवा की क्वालिटी तो घटिया नहीं है। डिवालप्रोएक्स सोडियम दी जा रही थी और उसकी क्वालिटी खराब नहीं थी फिर भी महिला अगर मेजर डिप्रेसिव डिसआर्डर से ग्रस्त थी तो यह समूची मानव जाति की साझी चिंता का विषय है और नया साल्ट खोजे जाने की जरूरत है।

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जो भी हो, मामले की गहन जाँच होनी चाहिए। अभी तक मेडिकल साइंस किसी भी सम्यक नतीजे पर नहीं पहुँचा है कि मानसिक बीमारियाँ होती क्यों हैं? आनुवांशिक कारक जिम्मेदार हैं या हालात?

यह महिला डॉ. चंदन की देखरेख में भर्ती थी। फोन पर डॉ. चंदन ने यह बताने से इन्कार कर दिया कि वह उसे कौन सा मूड स्टैबलाइजर दे रहे थे। PGI चंडीगढ़ के साइकियाट्रिस्ट अखिलेश शर्मा ने फोन पर कहा कि संभावना के तौर पर कहा जा सकता है कि उपचाराधीन मेंटल पेशेंट आत्महत्या कर सकता है। उनकी विस्तृत टिप्पणी की प्रतीक्षा है। डॉक्टर साहब मूल रूप से हरियाणा के महेंद्रगढ़ के रहने वाले हैं और बहुत ही बेहतरीन हिंदी बोलते हैं।

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PGI चंडीगढ़ से पासआउट और वाराणसी में प्राइवेट प्रैक्टिस कर रही साइकियाट्रिस्ट ज्योति सिंह का कहना है कि पेशेंट का अगर लंबे समय से मूड स्टैबलाइजर से इलाज चल रहा है और वह स्टेबल है तो इस बात के चांस नहीं होते कि वह आत्महत्या करेगा।

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