रायपुर : अडानी ग्रुप के पावर प्लांट के विस्तार को लेकर पर्यावरण सुनवाई में लोगों ने किस्म किस्म की गंभीर आपत्तियां दर्ज कराई हैं. वहीं, कुछ ने विस्तार का सपोर्ट किया. तो कुछ ने कहा कि प्लांट के मजदूरों को न ठीक मजदूरी मिलती है और न ही इससे आम नागरिकों को कोई फायदा है.
बता दें कि रायपुर जिले के तिल्दा ब्लॉक स्थित रायपुर थर्मल पावर प्लांट के प्रस्तावित अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल 1600 मेगावाट क्षमता विस्तार की पर्यावरण सुनवाई शनिवार को रखी गई थी.
सुनवाई के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता और ग्रीन नोबल से सम्मानित आलोक शुक्ला ने विस्तार को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि ईआईए अधिसूचना, 2006 में विहित जन सुनवाई के नियमों का पूर्ण अनुपालन नहीं हुआ और इस गंभीर लापरवाही को संज्ञान में लेते हुए जनसुनवाई को निरस्त किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि पर्यावरण समाघात निर्धारण (ईआईए) अधिसूचना, 2006 की धारा 7(i) के प्रक्रम III लोक परामर्श के बिंदु क्रमांक (vi) के अनुसार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह सुनिश्चित करना होगा कि परियोजना के क्रियाकलापों के संबंध विस्तृत प्रचार के लिए मीडिया और समाचार पत्रों का उपयोग हो साथ ही इसकी जानकारी संबंधित वेबसाइट में भी डाली जाए और ड्राफ्ट संक्षेप ईआईए रिपोर्ट भी वेबसाइट पर उपलब्ध हो ताकि लोग लिखित में विभिन्न पर्यावरणीय पहलुओं को उजागर कर सकें. परिशिष्ट ।V में उल्लेखित प्रक्रिया के अनुसार ड्राफ्ट संक्षेप ईआईए की प्रति स्थानीय भाषा में जिला स्तरीय कार्यालयों और पंचायत में उपलब्ध होना अनिवार्य है ताकि प्रभावित व्यक्ति इसका अवलोकन कर सके.
शुक्ला ने आरोप लगाया कि उक्त नियमों का अनुपालन नहीं हुआ है. छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के वेबसाइट में लोक परामर्श वाले भाग में इस जनसुनवाई की जानकारी और ड्राफ्ट संक्षेप ईआईए की प्रति अपलोड नहीं की गई है. लोक सुनवाई हेतु आवश्यक दस्तावेज एवं स्थान की जानकारी का विस्तृत प्रचार ठीक से नहीं किया गया, जिस कारण इस परियोजना से हो रहे पर्यावरणीय दुष्प्रभाव के संबंध में लोगों की राय स्पष्ट तरीके से सामने नहीं आ पाई. ऐसे खानापूर्ति प्रक्रिया का कोई औचित्य नहीं है अगर इसकी मूल मंशा को ही ध्यान में न रखा जाए. अत: इस जन सुनवाई को तत्काल प्रभाव से निरस्त घोषित किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि कंपनी द्वारा पूर्व में इस परियोजना को जारी पर्यावरणीय स्वीकृति की शर्तों का गंभीर उल्लंघन और पर्यावरण प्रदूषण से स्थानीय लोगों की आजीविका, स्वास्थ्य और दैनिक जीवन अत्यंत प्रभावित है.
जनसुनवाई का विरोध करते हुए कहा गया कि केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा 9 मई, 2011 को 2-685 मेगावाट ताप विद्युत संयंत्र प्रारंभ करने मेसर्स जीएमआर एनर्जी लिमिटेड को पर्यावरणीय स्वीकृति जारी की गई थी. 26 फरवरी 2015 को मंत्रालय द्वारा जारी इस परियोजना के मॉनिटरिंग रिपोर्ट में पर्यावरणीय स्वीकृति की शर्तों के अनुपालन में गंभीर लापरवाहियां दर्ज की गई. इसके बाद 5 नवंबर 2019 को केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा जारी एक पत्र में परियोजना का स्वामित्व जीएमआर एनर्जी लिमिटेड से रायपुर एनर्जेन लिमिटेड को स्थानांतरित किया गया, जो अडानी पावर लिमिटेड की सहायक कंपनी है. 19 जनवरी 2022 को केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की नया रायपुर स्थित एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा जारी उक्त परियोजना की मॉनिटरिंग रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरणीय अनुपालन में गंभीर कमियां पाई जिस पर विचार न करते हुए इस विस्तार परियोजना को स्वीकृति प्रदान की गई तो उसके अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय दुष्प्रभाव होंगे.
विस्तार परियोजना का विरोध करते हुए कहा गया कि परियोजना की मॉनिटरिंग रिपोर्ट के अनुसार कंपनी की रेलवे साइडिंग से निकलने वाले दूषित जल का बहाव यह दर्शाता है कि कोल हैंडलिंग क्षेत्र अब भी जीरो डिस्चार्ज का पालन करने में असफल है. साथ ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी रेलवे साइडिंग गाइडलाइन्स के अनुसार कंपनी साइडिंग का प्रबंधन नहीं कर रही है, जिस से लोगों की कृषि भूमि दूषित हो रही है और इसका सीधा प्रभाव उनकी आजीविका पर पड़ रहा है.
आलोक शुक्ला ने कहा कि महानदी के समोदा डैम से बड़े पैमाने पर पावर प्लांट की जल आपूर्ति निर्भर है लेकिन नदी में पानी की उपलब्धता के महत्वपूर्ण अध्ययन कंपनी आज तक नहीं कर पाई है. समोदा डैम से 35 किलोमीटर लम्बी पाइपलाइन से पावर प्लांट अपनी जल आपूर्ति करता है. ईआईए रिपोर्ट में दी गई जानकारी के अनुसार इस प्रस्तावित क्षमता विस्तार से डैम पर जल आपूर्ति का भार बढ़ेगा, जो 25 एमसीएम से बढ़कर 61 एमसीएम प्रति वर्ष होगा. पावर प्लांट के संचालन में बड़े पैमाने पर पानी की जरूरत होती है, कंपनी ने अपने जल आपूर्ति की व्यवस्था तो कर ली है लेकिन जिस प्रकार जल संकट आज के समय एक बड़ी समस्या बन गई है, ऐसे में नदी और नालों एवं अन्य जल धाराओं के प्राकृतिक बहाव को ध्यान में रखते हुए एक सम्पूर्ण वैज्ञानिक और सामाजिक अध्ययन अत्यंत आवश्यक है जिसको करने में कंपनी पूर्णत: विफल रही है. कंपनी को 9 मई 2011 को जारी पर्यावरणीय स्वीकृति पत्र में यह अध्ययन कराया जाना एक महत्वपूर्ण शर्त है पर कंपनी ने इसका भी खुला उल्लंघन किया है.
शुक्ला ने कहा कि जिप्सम और लाइमस्टोन के सड़क मार्ग से होने वाले परिवहन से उत्पन्न वायु प्रदूषण को ईआईए रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया है. ईआईए रिपोर्ट में कोयला रेल से आएगा कह कर अन्य परिवहन संबंधित वायु प्रदूषण स्त्रोतों की पहचान नहीं की गई जो एक गंभीर लापरवाही है. जबकि रिपोर्ट में लिखा है कि 1,75, 350 एमटीपीए लाइमस्टोन ट्रक के माध्यम से पावर प्लांट लाया जाएगा और 2,80,560 एमटीपीए जिप्सम उत्पन्न होगा, जिसका प्रयोग एसीसी सीमेंट और अंबुजा सीमेंट संयंत्रों में किया जाना है तो इसका भी परिवहन होगा. सड़क मार्ग से परिवहन से उत्पन्न होने वाला वायु प्रदूषण केवल स्थानीय नहीं रह जाता है बल्कि पूरे परिवहन मार्ग के आस-पास रहवासियों को प्रभावित करता है.
रेलवे साइडिंग में कोयले के लोडिंग, अनलोडिंग एवं कोल हैंडलिंग से उत्पन्न होने वाले वायु प्रदूषण एवं जल प्रदूषण के संदर्भ में आलोक शुक्ला ने कहा कि केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा की गई मॉनिटरिंग में रेलवे साइडिंग के प्रबंधन में खामियां पाई गई थी, उसके बाद भी ईआईए रिपोर्ट में इस समस्या के कारणों और निदान के बारे में कोई भी उल्लेख न होना गंभीर लापरवाही है. इस संबंध में कंपनी को गंभीरता से रेलवे साइडिंग प्रबंधन योजना बनाए बिना इस क्षमता विस्तार को अनुमति नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि पहले इस पावर प्लांट को 6.77 मिलियन टन कोयला प्रति वर्ष चाहिए होता था और अगर क्षमता विस्तार हुआ तो 13.37 एमटीपीए कोयला रेल के माध्यम से पावर प्लांट तक पहुंचेगा, जो पहले की अपेक्षा दो गुना है.
शुक्ला ने आगे कहा कि ईआईए रिपोर्ट में भूमि उपयोग के वर्गीकरण के अनुसार परियोजना के 10 किमी के अध्ययन क्षेत्र में 57.76 प्रतिशत कृषि भूमि, 18.8 प्रतिशत वन भूमि जिसे दो संरक्षित वन है, 5 प्रतिशत में विभिन्न जल स्त्रोत कुछ 14 तरह के टैंक, नहर, जलाशय और जल धाराएं हैं. ये सभी भूमि उपयोग, इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों की आजीविका और जीवन के लिए आवश्यक है. पावर प्लांट के उत्पादन और जल स्त्रोत प्रभावित होते हैं लेकिन प्रदूषण के स्त्रोतों की पहचान करने में कमी आगे चलकर प्रदूषण की बड़ी समस्याओं को जन्म देगा जिससे स्थानीय किसान और सभी वर्ग के लोग प्रभावित होंगे.
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