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उत्तर प्रदेश

आजमगढ़ : चचेरे भाइयों की बदनीयती के शिकार उपेंद्र सिंह को न्याय क्यों नहीं मिल रहा है!

दायें लाल शर्ट में उपेन्द्र सिंह और बायें लेखक सिंहासन चौहान!

सिंहासन चौहान-

न और बल की ताकत में आदमी इतना अंधा हो जाता है कि अपनों को ही बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ता है, जबकि सबको मालूम है कि हम कितना भी धन जोड़ लें महल-अटारी बना लें मगर एक दिन सब कुछ यहीं छोड़कर चले जाना है.. फिर भी दूसरों की जमीन जायदाद हड़प लेने की फितरत से बाज नहीं आते। आज इंसाफ और इंसानियत नाम की कोई चीज नहीं रह गयी है। कानून पैसे वालों की रखैल जैसा लगने लगा है, एक आम आदमी न्याय के लिए आखिर जाए तो कहां?

उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ के छोटे से गाँव ओझौली में भी इसी तरह का एक किस्सा देखने को मिला, जहां उपेंद्र सिंह पुत्र स्वर्गीय भगवती सिंह अपने ही परिवार द्वारा प्रताड़ित किए जा रहे हैं।

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पीड़ित पक्ष (उपेंद्र सिंह, दाएं)

भरे-पूरे परिवार में उपेंद्र सिंह का बचपन चचेरे भाइयों की दबंगई झेलते गुजरा। उनके अपने ही चचेरे भाई मुन्ना सिंह, शंभु सिंह, उमाशंकर सिंह, विजयी सिंह, कपिल देव सिंह और दया शंकर सिंह ने पुस्तैनी खपरैल के मकान में ताला बंद कर इनको घर से बाहर निकाल बेदखल कर दिया था। अभी खपरैल का मकान नहीं है उसकी जगह पर नया ईंट का पक्का मकान बनाकर उसके चारों तरफ से चारदीवारी करके भगवती सिंह के हिस्से की जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया गया है।

भगवती सिंह बगल में ही जमीन खरीद कर उस पर मंडइ बनाकर अपने तीन बच्चों जनार्दन सिंह, महेश सिंह व उपेन्द्र सिंह के साथ रहने लगा। वक्त बीतता रहा मगर आपसी रंजिश कम नहीं हुई। उसके कुछ दिन बाद उपेंद्र सिंह के पिता भगवती सिंह को खेत में काम करते समय उक्त लोगों ने लाठी, भाला आदि मारकर, मरा समझकर फेंक दिया था, लेकिन ऊपर वाले की दया से वो बच गए। इसके 2-3 साल बाद फिर से उन लोगों ने लाठी, बल्लम से वार किया जिसमें उपेंद्र सिंह के चाचा भागीरथी सिंह की मौत हो गई, भगवान की कृपा से भगवती सिंह एक बार फिर बच गए। मुकदमा वगैरह सब हुआ मगर इस सड़े सिस्टम में थाने पुलिस की सेटिंग से ये लोग मुकदमे में किसी तरह से बरी हो गए।

वक्त बीता पर इन लोगों की दबंगई चालू रही। कभी रास्ता रोकना तो कभी थाने की मिलीभगत से इन्हें हर तरह से प्रताड़ित किया गया। उपेंद्र सिंह के बड़े भाई जनार्दन सिंह प्रताड़ना सहन नहीं कर पाए। वे मानसिक रूप से पूरी तरह डिस्टर्ब हो गए। उनका बहुत उपचार किया गया पर उन्हें बचाया नहीं जा सका। प्रताड़ना अभी भी जारी है। गांव के पूर्व प्रधान अजय सिंह व उनके पिता प्रभुनाथ सिंह राजनीतिक पकड़ वाले विधायक सांसदों व कुछ माफियाओं से मेल-जोल रखते हैं जो इन लोगों की तरफ से थाने में पैरवी इत्यादि करते रहे। नतीजतन, दोषी हमेशा बच निकलते रहे। असल पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाया। एसपी-डीएम व हर बड़े अधिकारियों के पास न्याय की गुहार लगाई, मगर नियति देखिए कि न्याय भी शायद इनके पास आना नहीं चाहता।

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2009 में इन्हीं लोगों द्वारा उपेंद्र सिंह आदि के ऊपर जानलेवा हमला किया गया जिसमें छोटा भाई महेश मौके पर उपस्थित नहीं था। वह किसी काम से गोरखपुर गए थे। लेकिन थाने में विपक्ष द्वारा साजिशन उनपर भी मुकदमा ठुकवा दिया गया। मुकदमे के कुछ साल बाद महेश सिंह भी मानसिक तनाव का शिकार हो गए हैं।

जान बचाकर, उपेंद्र सिंह अब सपरिवार दिल्ली रहते हैं। घर की देखभाल करने वाला कोई नहीं है जो भी बची खुची जमीन है उसे लोगों ने कब्जा कर लिया है। घर पर ना रहने की वजह से लोग इनकी जमीन कब्जाते ही जा रहे हैं, इनकी गैर मौजूदगी में इनकी खेती की जमीन पर जाने के लिए चारदीवारी बनाकर रास्ता ही बंद कर दिया गया है, अपनी ही जमीन पर जाने के लिए रास्ता ना होने की वजह से वह जमीन भी पार्टीबंदी का शिकार हो गई। शासन प्रशासन में सुनवाई की भी कोई गुजाईश ही नहीं है।

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हालांकि, उपेंद्र सिंह अभी भी उन लिखी बातों पर भरोसा कर रहे हैं, जिसमें कहा जाता है कि… देर भले हो जाए पर न्याय एक न एक दिन जरूर होता-मिलता है। अब उन्हें कौन समझाए कि उनके जैसे लाखों लोग न्याय की आस में चप्पलें चटकाते घूम रहे हैं, और सिस्टम धनपशुओं के इस्तकबाल में मुजरा करने लगा है।

पेड़ काटकर चचेरे भाइयों ने जमीन कब्जा ली

सामाजिक कार्यकर्ता और आजाद अधिकार सेना के जिला उपाध्यक्ष बलिया, सिंघासन चौहान द्वारा पीड़ितों के लिए दी गई एप्लीकेशन, नीचे देखें…

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