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सुख-दुख

DGP पीसी कक्कड़ के निधन पर इस पुलिस अफसर ने यूँ किया दिल से याद!

बद्री प्रसाद सिंह-

पूर्व डीजीपी पीयूष चंद्र कक्कड़ का स्वर्गवास दि 18 जून को लखनऊ में हो गया तथा अगले दिन वहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया।वह 1983 बैच के आईपीएस अधिकारी थे और प्रयागराज के बाई का बाग मोहल्ले के मूल निवासी थे। उनके पिता जी ब्रिटिश काल में कलेक्टर रहे थे।

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वर्ष 1985 में मैं सेक्टर आफिसर सीबी, सीआईडी इलाहाबाद होकर आया तो वह आईजी सीआईडी थे। तब सीआईडी का मुखिया आईजी ही होता था। वह समय के पंचुअल तथा ड्रेस कोड वाले अधिकारी थे। जब भी इलाहाबाद आते, अपने घर ही रुकते, सलामी गार्द तथा सिविल पुलिस के अधिकारी का उनके स्वागत में आने की मनाही थी। सेक्टर आफिसर के नाते मैं ही वहां स्वागत करता। मेरा ड्रेस सेंस अच्छा नहीं था, कभी मैं सैंडिल पहनने, कभी चेक वाली शर्ट पहनने कभी फुल स्वेटर पहनने आदि पर डांट खाता। मेरे कार्यालय आने पर वह सदैव मेरे कार्य की प्रशंसा करते। मेरे एसपी स्वनामधन्य डीके पंडा जी थे इसके बाद भी मैं एक साल तक चैन से सीबी में रहा तो इसका श्रेय कक्कड़ सर को ही था ।उनकी माता जी बहुत ही सज्जन एवं धर्मपरायण महिला थी। मैं कक्कड़ सर की अनुपस्थिति में जब भी उनके घर गया, माता जी ने सदैव घर की बनी नमकीन तथा मिष्ठान बड़े मनुहार से खिलाया। एक कलेक्टर की पत्नी तथा दो सपूतों की मां होने के बाद भी उनमें रंचमात्र भी अहंकार नहीं था।

मैं वहां से 1986 में सीओ कोतवाली इलाहाबाद के पद पर आया। वर्ष 1987 में वह डीजीपी हुए, उसी दिन हमारे एसएसपी डीपी सिन्हा सर ने मुझे बुलाकर कहा कि डीजीपी ने कल 11 बजे मुझे अपने कार्यालय में बुलाया है, मेरे पूछने पर वह कारण न बता सके और न मैं ही कुछ समझ सका। मैंने कहा कि मैं सरकारी जिप्सी से चला जाऊंगा। उन्होंने मना करते हुए कहा कि डीजीपी इमानदार अधिकारी हैं,पता नहीं किस हेतु बुलाया है, मैं सुबह त्रिवेणी मेल से चला जाऊं। मैंने कहा कि मैं भी ईमानदार अधिकारी हूं, डीजीपी के काम के लिए मैं क्यूं अपने किराए से जाऊं? फिर रेलवे स्टेशन से बावर्दी रिक्शे से डीजीपी कार्यालय जाना पुलिस अधिकारी की शान के खिलाफ है।

अंत में मुझे जिप्सी से लखनऊ जाने की अनुमति इस शर्त पर मिली कि उनके पूछने पर मैं यह राज न खोलूं। मैं यह सोचते हुए वहां पहुंचा कि पता नहीं मैं क्यों बुलाया गया हूं। जब मैं उनसे मिला तो उन्होंने स्नेह से पूंछा कि वह इस पद पर कैसे लग रहे हैं? मैंने कहा कि वह माता जी की कृपा से ही इस पद पर पहुंचे हैं। उन्होंने भी यह स्वीकार किया। दरअसल वह ईमानदार अधिकारी थे और सरकार उन्हें डीजीपी बनाना नहीं चाहती थी। अगले डीजीपी भटनागर साहब को होना था। उनके डीजी होने में कुछ माह कम थे, मजबूरी में यह स्टाप गैप व्यवस्था में बनाए गए थे। इधर उधर की बात के बाद उन्होंने मुझसे नगर पुलिस व्यवस्था के लिए डीजीपी की तरफ से एक सर्कुलर बनाने को कहा। मैं डर गया। मैंने कहा कि मैं बहुत कनिष्ठ अधिकारी हूं, किसी दूसरे वरिष्ठ से बनवा लें, लेकिन वह नहीं माने और मेरी प्रशंसा करते हुए मुझे ही वह सर्कुलर बनाने का आदेश दिया। और समय होता तो डीजीपी की यह प्रशंसा मेरे लिए गर्व की बात होती लेकिन आज मैं फंस गया था। उनका कार्यकाल मात्र तीन माह का था, सो मैंने कुछ समय मांगा और वहां से भाग खड़ा हुआ और काम के बोझ में वह सर्कुलर की बात भूल गए।

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वर्ष 1988 में वह डीजीपी होकर इलाहाबाद भ्रमण पर आए। सर्किट हाउस की मीटिंग में उन्होंने अपने घर बैरहना क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया। अगले दिन एसपी नगर, सीओ सिटी द्वितीय घिल्डियाल ने मय फोर्स के अतिक्रमण हटवाया। शाम को उन्होंने इस अभियान को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया। सीओ घिल्डियाल मेरे उनके संबंध जानते थे, वह मुझसे इस अभियान को रुकवाने को कहा क्योंकि स्थानीय नेता इससे रुष्ट थे। अगले दिन मैं 9 बजे डीजीपी के घर जाकर इसका जिक्र उनकी माता जी से चुपके से कर बताया कि इस अभियान से गरीबों की रोजी रोटी जा रही है और वे बद्दुआ दे रहें हैं, वह डीजीपी को समझा दें और इसमें मेरा नाम न आए। थोड़ी देर में माता जी ने उन्हें समझा कर राजी कर लिया। मैं व घिल्डियाल मय फोर्स के बाहर ही खड़े थे, मेरा बुलावा आया मैंने भी माता जी की हां में हां मिला कर अतिक्रमण अभियान रुकवा दिया। कक्कड़ सर अंत तक अतिक्रमण रुकवाने में मेरा रोल नहीं जान सके।

कुछ दिन बाद वह पुनः इलाहाबाद आए। सर्किट हाउस की मीटिंग के बाद मुझसे कहा कि कल वह माघ मेला में रह रहे देवरहा बाबा का दर्शन करने जाएंगे, मैं 100 रुपए का फल लेकर उनके घर सुबह आ जाऊं, वह 100 रुपए मुझे दे दिए। माघ मेला मेरे क्षेत्र में नहीं था, एसएसपी ने तत्काल व्यवस्था करने को कहा तो उन्होंने डांटकर कहा कि उनके साथ केवल बद्री ही रहेंगे। सब चुप हो गये। मैंने धीरे से कहा कि मैं मेले में रास्ता भूल सकता हूं, अनुमति दें तो एक दरोगा को पायलटिंग में लगा लूं। वह सहमत हो गए।

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अगले दिन मैं फल लेकर उनके घर गया। वह कार से चल दिए। कार में आगे ड्राइवर व मैं, पीछे वह पति पत्नी थे। मेरी गाड़ी उनके घर खड़ी हो गई। बांध पर पाइलट मिल गया हम बाबा के आश्रम आए।फल की गठरी लादे मैं उनके साथ भीतर आश्रम में आया। देवरहा बाबा अपने मचान पर नहीं थे, मैंने जुगाड़ से उन्हें मंच पर बुलवाया। उन दोनों के साथ मैं भी फल लेकर गया व फल उनके शिष्य को दे दिया।

डीजीपी ने मुझे अपना कैमरा सेट कर देते हुए कहा था कि जब देवरहा बाबा उनके सर पर अपना पैर रखें तभी मैं फोटो खींच लूं। बाबा ने लगभग 40 किलो फल गठरी में दिए, वहां मैं ही था सो गठरी मुझे ही पकड़नी पड़ी। बाबा ने मुझे देखकर कहा कि बद्री भगत, तुम तबसे नहीं आए। मैं स्तब्ध रह गया। जब मैं दो वर्ष पूर्व सीआईडी में था तब मैं कक्कड़ सर के साए माघ मेला में उनके पास गया था और सर ने बाबा से मेरा परिचय कराया था। बाबा ने मुझे आते रहने को कहा था लेकिन इलाहाबाद रहते हुए भी मैं वहां कभी नहीं गया। आते समय सर के पूंछने पर मैंने झूठ बोला कि मैं वहां जाता रहता हूं लेकिन मुझे उनकी स्मरण शक्ति ज्ञात नहीं थी, आज मैं फंस गया। मैंने भी हार नहीं मानी और पुलिसिया हिकमतअमली से कहा कि बाबा मैं आता तो हूं लेकिन सामने की भीड़ से ही आपका दर्शन कर लेता हूं। उन्होंने भविष्य में अपने पास आने को कहा, मैं प्रणाम कर अलग चला आया। डीजीपी ने उनसे कुछ बातें की और लौट कर मुझसे पूछा कि मैंने फोटो ले ली है, मैंने मना करते हुए कहा कि बाबा ने तो पैर आपके सर पर रखा ही नहीं, मैं कैसे फोटो खींचता। इसके लिए मैं रास्ते भर डांट सुनते उनके घर आया और वहां से अपने कार्यालय आया।

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कक्कड़ सर मात्र तीन माह डीजीपी रह कर सेवानिवृत्त हो गए। सीआईडी में व तथा सीओ शहर के कार्यकाल में उनसे कितनी बार डांट खाया लेकिन वह डांट या झिड़की पितृवत थी। वह सीआईडी के समय बहुत व्यवहारिक बात बताते। उनका घर बहुत बड़ा था। एक दिन मैंने कहा कि मकान का एक भाग किराए पर दे दें, तब वह डांट कर पूछा कि शहर में मेरा कोई मकान है, मेरे मना करने पर बोले कि जब भी अपने रहने हेतु घर बनवाना, कोई हिस्सा किराए पर न देना, इससे मानसिक शांति चली जाती है।

सेवानिवृत्ति के बाद कई बार मैं लखनऊ में उनसे मिला, सदैव स्नेह मिला। वह पहली अप्रैल को मसूरी चले जाते थे और गर्मी के बाद लखनऊ बेटे के साथ रहते थे। आज उनके निधन से उनकी बहुत सी बातें याद आ रही हैं। क्या किया जाए, जाना तो सभी को है, अच्छे लोगों की यादें साथ रह जाती है। कक्कड़ सर को विनम्र श्रद्धांजलि एवं शत शत नमन।

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लेखक रिटायर आईपीएस अधिकारी हैं.

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