हरीश पाठक-
मुम्बई। भीड़ इतनी थी की सांताक्रुज के उस हिन्दू श्मशान गृह में पैर रखने की जगह नहीं थी। उदास, गमगीन और एक दूसरे को दिलासा देते चेहरे। सब के मुंह से लगभग एक ही शब्द ‘बहुत खलेगा इस भले आदमी का जाना।’
हस्तीमल हस्ती की मृत्यु की खबर सभी को झकझोर गयी। 24 जून को 3:30 बजे उनकी साँसें थम गयीं और आज(25 जून) को ठीक 4.40 पर उनका तमाम नम आंखों के बीच अंतिम संस्कार कर दिया गया। मुखाग्नि उनके पुत्र प्रमोद व कमलेश ने दी।
देश के साहित्यिक समाज में अपनी विनम्रता, सौम्यता, सज्जनता व शालीनता के सँग-साथ बेहतरीन गजलों, दोहों और ‘काव्या’ जैसी बेहतरीन पत्रिका (जो 25 साल तक निकलती रही) के कारण वे अपनी रचनात्मकता को धार देते रहे। उनकी मान्यता थी कि पहले लिखो, फिर छपो, फिर मंच पर जमो और अंत में कोई बड़ा गायक उस लिखे को गाये-तभी सफ़लता है, वरना तो बहुत लोग लिखते हैं।
उन्होंने ऐसा किया भी। उनकी गजलों को जगजीत सिंह से ले कर पंकज उदास, राजकुमार रिजवी, पीनाज मसानी सभी ने गाया और मुंबई के मूलतः इस स्वर्ण व्यवसायी ने सरहद पार तक लोकप्रियता अर्जित की।
आज श्मशान गृह में उनकी यह प्रतिष्ठा दिखी भी। उनके अंतिम संस्कार में उनके तमाम व्यवसायी मित्र, रिश्तेदार, प्रशंसकों के अलावा मुम्बई के साहित्यकारों में डॉ दत्तात्रय मुरुमकर, डॉ हूबनाथ पांडेय, अशोक बिंदल, हरीश पाठक, राकेश शर्मा, शैलेश सिंह, डॉ सत्यदेव त्रिपाठी, प्रो रामलखन पाल, महेश दुवे, अरविंद राही, राजेश विक्रान्त, अनिल गौड़, सरताज मेहंदी, मुरलीधर पांडेय, हौसला प्रसाद अन्वेषी सहित तमाम रचनाधर्मी उपस्थित थे।
‘प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है ‘जैसी लोकप्रिय गजल लिखने वाले इस शायर ने रुखसत होने में जल्दी क्यों कर दी? थोड़ा वक्त और देते रचने में, मिलने-जुलने में। यह सवाल निरुत्तर है और रहेगा।