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सियासत

IIMC वाले उपाध्याय जी के पक्ष में उतरा एक छात्र, पढ़िए समर्थननामा!

चंदन चौपाल-

प्रो. राकेश उपाध्याय का ‘गैरवामपंथी’ होना ही ‘कारण’ है !

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मैं देश के प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थान आईआईएमसी की मौजूदा बैच में पढ़ने वाला गरीब दलित परिवार का छात्र हूं। दूर बिहार के एक गांव से आता हूं। दिल्ली में पढ़ने का सपना था, मेहनत की थी तो रैंक होल्डर बना, मुझे यहां आकर अच्छा लगा। आईआईएमसी में सभी वैचारिकी के लोग हैं, छात्र भी हैं, अच्छे प्रोफेसर हैं। प्रोफेसर राकेश उपाध्याय से मिलना सबसे अच्छा लगा। आपके प्रतिष्ठित पोर्टल Bhadas4Media पर प्रो. उपाध्याय के बारे में कुछ भ्रामक जानकारी देखी, इसलिए आपको लिख रहा हूं। इसमें सोशल मीडिया पर मेरे एक ट्वीट का स्क्रीन शॉट भी लगा है, लेकिन उससे बात पूरी साफ नहीं हो रही है कि मैं क्या कह रहा हूं, इसलिए मैं विस्तार से आपको लिख रहा हूं। भरोसा है कि आप इसे जगह देंगे।

डॉ राकेश उपाध्याय मेरे भी प्रोफेसर हैं। स्टूडेंट और प्रोफेसर के बीच डांट फटकार, समझाना-बुझाना सामान्य बात है, लेकिन यहां जो हुआ उसमें तो डांट-फटकार का मुद्दा भी नहीं है। रिक्रूटमेंट की प्रक्रिया में केवल यही बात सभी साथी छात्रों ने सुनी थी कि सोशल मीडिया पर संस्थान की गरिमा के खिलाफ मत लिखो, कल को किसी मीडिया संस्थान में जॉब मिलेगी और कोई अंदरूनी बात होगी तो क्या वहां भी इसी तरह संस्थान के खिलाफ लिखोगी। ये एक सवाल भी था और एक प्रोफेसर की अपने उस छात्र को नसीहत थी जो कि फाइनल परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुई है। प्रैक्टिकल के अंक भी प्रो राकेश उपाध्याय ने ही दिए हैं जिसने दूसरे सेमेस्टर में उस छात्रा का अंक प्रतिशत और अच्छा कर दिया। लेकिन छात्रा की सियासी करवट देखिए, रिजल्ट आते ही राजनीतिक तौर पर प्रेरित वामपंथी छात्रा ने उनकी साधारण बात पर FIR की धमकी ही नहीं दी बल्कि एक नेक, दयालु, सरल व सुलझे व्यक्तित्व और ‘गैरवामपंथी’ प्रोफेसर के ख़िलाफ़ जमकर राजनीतिक, कुत्सित, पूर्व नियोजित रणनीति के तहत बिना कारण जहर उगला।

सभी स्टूडेंट इस बात को जानते हैं कि प्रोफेसर उपाध्याय IIMC के TV पत्रकारिता के सबसे बेहतरीन और अनुभवी शिक्षक हैं, जिनसे हमने टीवी पत्रकरिता की बारीक़ समझ प्राप्त की है. सर पर लगाये गए आरोप निराधार और बेबुनियाद हैं। वह बच्चों के साथ एक गुरु नहीं बल्कि मित्र की भांति बातचीत करते हैं, सभी से विनम्र व्यवहार रखते हैं।

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IIMC में अभी प्लेसमेंट चल रहा है, आगे भी चलता रहेगा। संस्थान के कुछ मोरल कोड ऑफ़ कंडक्ट हैं, छात्रों की ओर से अंडरटेकिंग भी दी गई है कि हम आईआईएमसी की प्रतिष्ठा को कायम रखेंगे, उसके खिलाफ कुछ नहीं लिखेंगे, मीडिया संगठनों की प्रतिष्ठा और उनकी चयन प्रक्रिया का सम्मान करेंगे, लेकिन यहां छात्रा ने तो सारी हदें पार कर दीं। अंडरटेकिंग के खिलाफ जाकर खुद ही सोशल मीडिया के जरिए अपने संस्थान की प्रतिष्ठा मटियामेट की। देश के मीडिया संस्थानों के बारे में अनाप-शनाप लिखा। और तो और, किसी राजनीति और षड्यंत्र के तहत जूनियर्स बैच-2024-25 जो अभी एडमिशन प्रोसेस में है, उसके नाम 15 जून को अपने एक्स अकाउंट पर जाकर राष्ट्र के नाम संदेश जैसा जारी कर दिया कि आप लोग आईआईएमसी मत आइए। ऐसा क्यों किया, आप इनके अकाउंट पर जाकर खुद ही पढ़ सकते हैं। सवाल है कि महोदया को ये हक किसने दिया कि हम गरीब छात्रों को वो निराशा में झोंक दें। कंपनियों में आईआईएमसी और हिन्दी विभाग को ‘क्रांतिकारी’ की छाप लगवाकर सबके प्रति संदेह पैदा कर दें। इस तरह से तो महोदया, आप सोशल मंच पर IIMC की इमेज धूमिल करके हम जैसे गरीब और सुदूर देहाती क्षेत्र से आने वाले छात्रों के भविष्य और वर्तमान के लिए नौकरी ढूँढना और मुश्किल कर रही हैं।

प्रोफेसर राकेश उपाध्याय सर का जहां तक सवाल है तो सारा आईआईएमसी जानता है कि वो हमेशा बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी द्वेष के बच्चों को पढ़ाते हैं। मैं अनुसूचित जाति (Sechdule Caste) से आता हूँ और ईश्वर को साक्षी मानकर कह रहा हूं कि मैंने आज तक कभी भी राकेश सर के तरफ से रत्ती मात्र भी इस तरह की कोई भेदभावपरक या जातिगत भावना नहीं फील की है।

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उनका अपना एक अंदाज है, एक शैली है, वो लुभाती है, मोहक है, हंसाती है और खेल-खेल में हमें टीवी स्क्रिप्ट के वो हुनर सिखाती है जिसका अनुभव उनसे पढ़ चुके किसी भी दूसरे वामपंथी छात्र-छात्रा से भी आप पूछ लीजिए तो वो शायद ही नकार पाए। उनका एक दूसरा रूप है जो मेरा निजी अनुभव है। मैं बताना नहीं चाहता था, अब तो मैं पासआउट होने के कगार पे हूं, संस्थान के हॉस्टल में अभी अभी अंतःवासी हूं, लेकिन जब उनके खिलाफ हेट-कैंपेन देखी तो मेरा मन दुःखी हो गया। जब दर्जनों छात्र पारिवारिक आर्थिक तंगी की वजह से सेकंड सेमेस्टर की फीस नहीं भर पा रहे थे उस दौरान, तब राकेश सर ने उनकी आर्थिक मदद अपनी जेब से, अपने प्रयास से की थी ताकि बच्चों की पढाई न रुके। इस बात का गवाह मैं खुद हूँ। चुपचाप उन्होंने कितनों की ही मदद की है, करते आ रहे हैं। उनमें बहुत बच्चे SC/ST समुदाय से थे। आज के जमाने में हम जैसे गरीब छात्रों को थोड़ी भी मदद दिल्ली जैसे शहर में मिल जाए, बहुत बड़ी बात है।

वो IIMC के ऐसे प्रोफेसर हैं जिनका दरवाजा छात्रों के लिए हमेशा खुला रहता है। मैंने अपने जीवन में ऐसा इंसान नहीं देखा है। सर के जैसा स्वभाव विरले ही मिलता है। हम धन्य हैं जो हमें सर से पढ़ने का अवसर मिला। मैं दलित छात्र हूँ और मैंने महसूस किया है, इसलिए लिख रहा हूं कि प्रोफेसर राकेश उपाध्याय बहुत ही नेक, ईमानदार और स्वच्छ छवि के व्यक्ति हैं। उन पर आरोप मनगढंत और किसी खतरनाक योजना का हिस्सा है। मैं इस योजना के बारे में सबको आगाह करने के लिए लिख रहा हूं।

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किसी मामले में उनका कोई मुकाबला नहीं है। हम SC-ST गरीब छात्रों के लिए वो मसीहा से कम नहीं हैं। एक पुकार पर हमेशा दौड़ कर सहायता की है। मुझे साफ दिखता है कि उनका यही व्यवहार left विंग को चुभ रहा था कि कोई ब्राम्हण प्रोफेसर इस तरह क्यों जरूरतमंद छात्रों की मदद करता है? ईश्वर उन्हें लंबी उम्र दे, जो उनके खिलाफ बिना जानकारी गलत लिख रहे हैं, उनको सद्बुद्धि मिले। मैंने उनके बारे में गहराई से जाना है। वो आजतक, न्यूज 24, लाइव इंडिया, जी न्यूज में लंबे समय तक रहे हैं। टीवी चैनलों में उनकी जरूरत तो सदा ही है, वो बड़ी किस्मत से आईआईएमसी छात्रों को मिले हैं। यहां सभी प्रोफेसर अच्छे हैं, लेकिन प्रो. राकेश उपाध्याय का जो इंडस्ट्री का अनुभव है, वो उनकी टीचिंग में दिखता है। उनका प्रोफेशनल अनुभव उन्हें सबसे अलग कर देता है।

वो बहुत विद्वान हैं। बीएचयू में भी प्रोफेसर रहे हैं। हिंदू स्टडीज का मास्टर डिग्री कोर्स शुरु करवाया है तो उसका असर उनके ऊपर रहता ही है। भारतीय संचार दर्शन को बहुत खूबसूरती से समझाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि वो आरएसएस के रहमोकरम पर हैं। मुझे हंसी आती है ऐसा देखकर कि जो आदमी आजतक, जी न्यूज, न्यूज 24 जैसे चैनलों में मजबूती से काम करता रहा हो, वो भी यूपीए सरकार के जमाने में तो उसकी सारी योग्यता केवल इसलिए खारिज की जा रही है कि वो आरएसएस के रहमोकरम पर हैं। ऐसे लोग तो जहां रहते हैं, वहां ही अच्छा करके दिखाते हैं, यही मेरा सोचना है।

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वो हमारे लेखन में वर्तनी दोष को दूर करते हैं। कैसे अच्छा सोचें और लिखें, वो पढ़ाते हैं। खबर के मर्म को डिकोड करना सिखाते हैं। सत्य-तथ्य-कथ्य का फर्क समझाते हैं। मैंने उनकी सभी क्लास अटेंड की, नोट्स बनाए। उन्हीं नोट्स को पढ़ते पढ़ते लिख डाला। इसका कुछ हिस्सा मैंने ट्वीट भी किया है। कई दिनों में लिखा है। कई मित्रों से पूछकर इसे ठीक किया है। बहुत कुछ नया जोड़ा है, कई बार काटा-छांटा है। तब लिखा है।

किसी के लिए प्रो. राकेश उपाध्याय बनना आसान नहीं है। उनसे पढ़ना कविता सुनने जैसा है जिसमें कोई बोर नहीं होता। मन खुश हो जाता था। मैंने उनमें एक दार्शनिक भी देखा है, एक बच्चों जैसा निश्छल भाव देखा है जो अच्छाई देखकर छलक पड़ता है, बुराई देखकर मायूस होता है। ऐसे अनुभवी लोगों को बुरी नज़र से बचाकर रखना हम नई पीढ़ी के सभी छात्र-छात्रों की जिम्मेदारी है, यही मैं कहूंगा, ऐसे लोग ही हमारी जरूरत हैं।

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लेखक भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली से जुड़े दलित छात्र हैं. उनसे संपर्क [email protected] पर किया जा सकता है.

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IIMC के प्रोफेसर द्वारा मेरा उत्पीड़न बर्दाश्त के बाहर हो रहा है, इसलिए लिख रही हूँ!

IIMC का 400 पार वाला प्रोफेसर ‘उपाध्याय’ पीड़िता के ‘यादव’ होने से कुंठित है क्या?

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