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सुख-दुख

पत्रकार, रंगकर्मी और एक्टिविस्ट मयंक सक्सेना की मौत हो गई!

प्रशांत टंडन-

बहुत दुखद खबर: एक बहुत टैलेंटेड पत्रकार, दोस्त और सहयोगी मयंक सक्सेना के हार्ट अटैक से निधन की खबर मिली अभी. विश्वास ही नहीं हुआ कि मयंक ऐसे चले जाएंगे. परसों रात ही फोन पर लंबी बात हुई थी मयंक से. बहुत मिस करेंगे मयंक तुम्हें.

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यशवंत सिंह-

एक दुख भरी खबर है। मयंक सक्सेना का निधन हो गया है। उनका इलाज चल रहा था। सांस लेने में दिक़्क़त थी। सोशल मीडिया पर लोग मयंक के जाने की खबर पाकर स्तब्ध हैं। मयंक को उनके एक्टिविज्म के लिये भड़ास की तरफ़ से सम्मानित भी किया जा चुका है। मयंक नोएडा दिल्ली के कई न्यूज़ चैनलों में कार्यरत रहे। फिर वे मुंबई चले गए। उन्होंने थियेटर समेत कई फील्ड में ख़ुद को सक्रिय रखा। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।



बहुत बुरी ख़बर है..। साथी Mayank Saxena नहीं रहे। कवि, लेखक, स्क्रीन रायटर, जुझारू पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता मयंक का इस तरह अचानक विदा लेना अंदर तक हिला गया है। ये उम्र नहीं थी जाने की..! अभी तो तुम्हारे साथ कितनी डिबेट, कितने शो बाक़ी थे… ज़ालिम हुकूमत से बहुत लड़ाई लड़ना थी दोस्त और तुम इस तरह बिना कुछ कहे चले गए। अलविदा कैसे कहें…! -डॉ राकेश पाठक



ये खबर सुनकर तो दिल ही बैठा जा रहा है। यकीन ही नहीं हो रहा है कि यह सत्य है। राकेश पाठक सर की पोस्ट देखी तो एकाएक जैसे धक्का लगा। अरे ये क्या हुआ? चूंकि उसमें कैसे हुआ? क्या कारण रहा? कुछ लिखा नहीं था इसलिए तुरंत पंकज भाई को फोन किया। तो उन्होंने बताया कि मयंक भाई को कुछ अस्थमा की समस्या थी। और उनका इलाज चल रहा था। इस बीच दो-तीन दिनों से उनकी तबियत बिगड़ी हुई थी और उस लिहाज से अलग से आक्सीजन भी दिया जा रहा था। उसी बीच डाक्टरों ने उन्हें हर्ट का भी चेक अप करने की सलाह दी। अभी उस प्रक्रिया में जा ही रहे थे कि हॉर्ट अटैक आया और फिर वह हम लोगों से बहुत दूर चले गए। कुदरत इतनी कैसे क्रूर हो सकती है? एक चलते, बोलते और हरफनमौला इंसान को इस तरह से हमसे कैसे छीन लेगी? मयंक भाई अभी तो और भी लड़ाइयां लड़नी थीं। इस दौर के सत्ता के अन्याय और अत्याचार से लड़ने वाले जो कुछ योद्धा पैदा हुए थे मयंक भाई उनकी अगली कतार में थे। वह खुले तौर पर मोर्चा ले रहे थे। बगैर डरे, बगैर हारे और बगैर दो कदम पीछे हटे। अभी तो लड़ाई बाकी थी मयंक भाई। अभी तो मंजिल पर हम नहीं पहुंचे थे। और आप तो क्रांति के सिपाही थे। हमें तो बहुत दूर तक साथ जाना था। कहां आपने बीच में रास्ता बदल लिया और एक ऐसे रास्ते पर चले गए जहां से अब सिर्फ यादों में ही मुलाकात होगी। बहरहाल आपने अपने हिस्से का पूरा योगदान दिया है। और उसके लिए आपको तहेदिल से सैल्यूट। अलविदा मयंक भाई। -महेंद्र मिश्रा

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