सुशील मानव-
फरवरी 2020 में कला और आंदोलन के परिप्रेक्ष्य को लेकर Mayank Saxena जी से डेढ़ घंटे की बात-चीत हुयी थी, बहुत ही रचनात्मक बातचीत। कला, धर्म, समाज और प्रतिरोध के अंतर्संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर उनके विचार आधुनिक और मौलिक थे।
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कलाकार, कवि, फिल्म लेखक, संगीतकार, आर्ट एक्टिविस्ट, पत्रकार, एंकर कई आयाम थे उनके व्यक्तित्व के।
यूं तो उनसे मिलना शाहीन बाग़ में हुआ था। वीर, और मयंक की टीम ने रचनात्मक प्रतिरोध के तौर पर इंस्टटीलेशन किया हुआ था। जो शाहीन बाग़ आंदोलन का पहचान बन गया।
मयंक मुंबई से दिल्ली तक एनआरसी-सीएए-एनपीआर के खिलाफ़ देशभर में चल रहे जनांदोलन में अपने कला के जरिए प्रतिरोध को अलग ही मुकाम दे रहे हैं। उन्हीं की बदौलत हिंदी सिनेमा के कई चेहरों को हमने आंदोलन के समर्थन में उतरते देखा।
अभी उनके हर्ट अटैक से गुज़रने की ख़बर सुनकर स्तब्ध हूं। Nityanand भाई कह रहे हैं कि वैक्सीन जाने किस किसको छीनेगी।
दुष्यंत-
अस्थमा की वजह से कार्डिएक अरेस्ट असमय छीन ले गया हमसे मयंक सक्सेना को।
पागलपन से भरे एक लड़के का जाना उदास कर गया है। भाई आलोक तोमर की वजह से मयंक से परिचय हुआ था, पर आलोक भाई के दुनिया से जाने के बाद मयंक से जुड़ाव थोड़ा ज़्यादा बना।
ज़िद्दी था, दुनियावी समझदारी से दूर… जीवन के सरोकार बड़े थे उस अवांगर्द के। याद आओगे पागल लड़के।
फ़िल्म फेस्टिवल कर रहे थे तो बोला कि आना चाहता हूं, तो मैंने कहा स्वागत है, पर आने -जाने का खर्च उठाने का बजट नहीं है हमारे पास। लोकल हॉस्पिटेलिटी ज़रूर दे सकते हैं।
पागल अपनी जेब से टिकट करवा कर आ गया था, साथ खड़ा रहा।
केरला स्टोरी के मुद्दे पर आखिरी बार बात हुई थी। तब भी पागलपन, सरोकार और जुनून वही थे। अनअपोलोजेटिक किरदार वाले अव्यवहारिक लड़के!!
उफ़्फ़!!
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