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नीट और नेट के बहाने 10 साल सत्ता चला चुकी भाजपा की नालायकी, बेशर्मी और राजनीति को समझिये!

संजय कुमार सिंह

नीट की परीक्षा में घपले-घोटाले की खबरों के बाद परीक्षा रद्द कर दिया जाना सबसे सही होता। संदेश यही जाता कि परीक्षा की पवित्रता बनाये रखने के लिए आवश्यक कार्रवाई की गई। लेकिन सरकार शुरू में यह स्वीकार करने के लिए  तैयार ही नहीं थी कि प्रश्नपत्र लीक हुए हैं। इसलिए परीक्षा रद्द नहीं की गई। मामला सुप्रीम कोर्ट में नहीं जाता या स्वीकार नहीं किया जाता तो कोई चर्चा भी नहीं होती। अब प्रश्नपत्र लीक होने का मामला लगभग साफ है और भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख ने इसके लिए विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव, राहुल गांधी औऱ प्रियंका गांधी को जिम्मेदार ठहराया है। यहां मुद्दा यह है कि सरकार भाजपा की है और प्रश्नपत्र लीक के लिए विपक्ष के नेता जिम्मेदार हैं। मुझे लगता है कि हवा-हवाई आरोप लगाने की बजाय गंभीरता से कार्रवाई करनी चाहिये। अगर जिम्मेदार हैं तो कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है और कार्रवाई करने लायक मामला नहीं है तो विपक्षी नेताओं को जबरन अपराधी बनाकर कब तक चुनाव जीतेंगे?

यह इसलिए कि आज ही खबर है कि अरविन्द केजरीवाल को राउज ऐवेन्यू कोर्ट से नियमित जमानत मिल गई है। यह अलग बात है और खबर यह भी है कि ईडी जमानत के खिलाफ अपील करेगी। मेरा मानना है कि यह सरकारी एजेंसी का काम नहीं है। सरकार अपनी राजनीति के लिए ऐसा करवाये तो भी नहीं किया जाना चाहिये पर वह अलग मुद्दा है। ईडी का काम मामले की जांच कराना है, अभियुक्त को सजा सुनिश्चित करना भी हो सकता है लेकिन जब तक अपराध साबित नहीं हो जाये जेल में रखने की अपील क्यों? अगर अदालत ने जमानत दे दी है तो वह उसका काम है, अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट में भी जमानत पर सुनवाई हो चुकी है और फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। ऐसे में एक मुख्यमंत्री को जेल में रखने की क्या मजबूरी है। वह भी तब जब भाजपा से जुड़े एक पूर्व मुख्यमंत्री के मामले में एक अन्य हाईकोर्ट कह चुका है कि वे ऐरा-गैरा नहीं हैं।

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यही नहीं, कोई भी मानेगा कि मतदान से पहले अरविन्द केजरीवाल को नियमित जमानत मिल गई होती या सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया होता तो दिल्ली और एनसीआर की सीटों पर असर हो सकता था। और नहीं सुनाया तो मानना चाहिये कि ऐसा इसलिए नहीं सुनाया गया होगा। और अब जब जमानत मिली है तो देर से मिली है और शुद्ध रूप से इसका राजनीतिक कारण है। ऐसे में गैर राजनीतिक कारणों से ईडी की अपील का कोई मतलब नहीं है और राजनीति कारणों से अपील करना ईडी का काम नहीं है। फिर भी जो होगा, जब होगा तब टिप्पणी की जायेगी। आज नीट परीक्षा और संबंधित घपले पर काफी खबरें हैं। शुरुआत राहुल गांधी की टिप्पणी से करता हूं, “प्रधानमंत्री की चिन्ता नीट नहीं, सरकार बचाने की है”नवोदय टाइम्स ने पार्टी मुख्यालय में राहुल गांधी प्रेस कांफ्रेंस की खबर को इसी शीर्षक से प्रकाशित किया है। राहुल गांधी ने कहा कि शिक्षण संस्थाओं पर भाजपा और उसके मातृत्व संगठन से जुड़े लोगों ने कब्जा कर लिया है। जब तक इस स्थिति को बदला नहीं जायेगा तब तक पेपर लीक होना बंद नहीं होंगे।

आज द टेलीग्राफ का कोट भी राहुल गांधी का ही है। कहा जा रहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन-रूस और इजराइल-गाजा युद्ध रुकवा दिये लेकिन पेपर लीक नहीं रोक पा रहे हैं या फिर चाहते नहीं हैं। इसके अलावा नीट की खबरों के दो शीर्षक हैं यानी इसमें दो मुख्य बातें हैं। पहली, एनटीए के काम-काज की जांच के लिए बनेगी समिति। दूसरी बात अमर उजाला के अनुसार, छिटपुट गड़बड़ियों का असर पास होने वाले परीक्षार्थियों पर नहीं पड़ना चाहिये। टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक कुछ इस तरह होगा, छिटपुट गड़बड़ियों के लिए नीट क्लीयर करने वाले लाखों लोगों को सजा नहीं देंगे। बिहार के उपमुख्यमंत्री, विजय कुमार सिन्हा ने आरोप लगाया कि नीट पेपर लीक का कथित मास्टरमाइंड सिकंदर कुमार यादवेन्दु तेजस्वी यादव के निजी सचिव से जुड़ा हुआ है। अमर उजाला की खबर के अनुसार, चार परीक्षार्थियों को 40-40 लाख रुपये में प्रश्नपत्र दिये गये हैं। जाहिर है परीक्षा की पवित्रता खत्म हो गई।

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अब अगर आप कहें कि इन्हीं चार के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी या प्रश्नपत्र लीक करने वालों के  खिलाफ कार्रवाई से परीक्षा की पवित्रता बहाल हो जायेगी तो ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। दूसरी ओर, छात्र भी नहीं चाहते कि परीक्षा रद्द हो। संभव है सरकार पर इसका दबाव हो और इसी कारण आज यह संकेत दिया गया है कि परीक्षा रद्द नहीं होगी। जबकि परीक्षा रद्द होने का सीधा मतलब है कि प्रश्नपत्र खरीदने बेचने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी। भले पैसे लेकर प्रश्नपत्र बेचने वाले को पैसे मिल गये हों और वापस नहीं करने पड़ें लेकिन जिन्होंने खरीदे उनका पैसा तो बेकार गया। इसलिए आगे दूसरे छात्र नहीं खरीदेंगे और अगर वे जोखिम नहीं लेना चाहेंगे तो लीक प्रश्नपत्र को आगे बेच देंगे इससे भविष्य में लीक होना पता चल जायेगा। मुझे लगता है कि परीक्षा रद्द करना ही सर्वश्रेष्ठ उपाय है। परीक्षा रद्द नहीं हुई तो और लोग ऐसा करने के लिए प्रेरित होंगे और भविष्य में लीक रोकना मुश्किल होगा।

यह अलग बात है कि इसके लिए जरूरी है कि सरकार को अपने सिस्टम पर भरोसा हो। फिर लीक हो जाये और फिर उजागर हो जाये तो भारी बेइज्जती होगी और जब कहा जा चुका है कि कामकाज के लिए समिति बनाई जायेगी तो आप समझ सकते हैं कि परीक्षा रद्द करने में दिक्कत क्या है। दिलचस्प यह है कि नीट के बाद नेट की परीक्षा रद्द करनी पड़ी और उसके मामले में तो पैसे जमा करने के लिए क्यूआर कोड और लीक करने वालों या प्रश्नपत्र बेचने वालों को जानने के लिए लिंक वगैरह सब सार्वजनिक था और यह कि पैसे भेजने पर प्रश्नपत्र व्हाट्सऐप्प पर आ जायेंगे। इससे समझा जा सकता है कि परीक्षा कराने की सरकार की योग्यता क्षमता का क्या हाल है। हालांकि, यह नीट ही नहीं नेट से भी साबित है।

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नीट का आयोजन करने वाली स्वायत्त’ संस्था नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) की स्थापना नवंबर 2017 में की गई थी। देश की तमाम श‍िक्षण संस्‍थाओं व फेलोश‍िप में दाख‍िले नियुक्ति के ल‍िए जांच परीक्षा आयोज‍ित करने की ज‍िम्‍मेदारी एनटीए की है। इसे चलाने के ल‍िए एक गवर्न‍िंग बॉडी है। इसमें अध्‍यक्ष के अलावा महान‍िदेशक (जो सदस्‍य सच‍िव होते हैं) व सदस्‍य शाम‍िल होते हैं। मौजूदा महान‍िदेशक (मेंबर सेक्रेटरी) सुबोध कुमार स‍िंह हैं। बतौर सदस्‍य आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी आद‍ि के डायरेक्‍टर्स और कुछ व‍िश्‍व‍व‍िद्यालयों के कुलपत‍ियों को शाम‍िल क‍िया जाता है। इस समय इसके चेयरपर्सन डॉ. प्रदीप जोशी हैंजनसत्ता की एक पुरानी खबर के अनुसार वे भाजपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्याथी परिषद के पदाधिकारी रहे हैं और उनके संबंध अटल बिहारी वाजपेयी तथा मुरली मनोहर जोशी से भी रहे हैं। इससे पहले वे संघ लोक सेवा आयोग, मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग और छत्तीसगढ़ पीएससी के अध्यक्ष रह चुके हैं। छत्‍तीसगढ़ से पहले वह एमपीपीएससी अध्‍यक्ष थे।

आरटीआई के एक जवाब के अनुसार पूर्व में उनकी नियुक्ति आरएसएस के एक पदाधिकारी की सिफारिश पर हुई थी। इससे पहले नीट परीक्षा के नतीजों में धांधली की खबरें आने के बाद जांच के ल‍िए जो कमेटी बनी उसका प्रमुख एनटीए अध्‍यक्ष को ही बनाया गया था। वही एनटीए अध्‍यक्ष ज‍िन पर यह परीक्षा सही तरीके से कराने की जवाबदेही थी। अमर उजाला की आज की खबर में ढेरों सूचनाएं हैं। पर यह नहीं बताया गया है कि एनटीए के प्रमुख एबीवीपी और संघ से जुड़े रहे हैं। खबर यह भी है कि 2017 में बने एनटीए में सुधार के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाई जाएगी। यह इसकी संरचना, कार्य प्रणाली, परीक्षा प्रक्रिया, पारदर्शिता और डाटा सुरक्षा प्रोटोकोल को और बेहतर बनाने के लिए सुझाव देगी। कहने की जरूरत नहीं है कि इसकी जरूरत तब होती जब स्वायत्त संस्थान का मुखिया योग्यता के आधार पर चुना जाता, उसे स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाता और तब प्रश्नपत्र लीक होता और वह उसका कारण नहीं बताता। जो भी हो।

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आज शीर्षक में बताया गया है कि परीक्षा रद्द नहीं होगी दूसरी ओर यह भी खबर है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और एनटीए को नोटिस भेजा है। द टेलीग्राफ में आज एनटीए लीड है। फ्लैग शीर्षक है, एनटीए के गठन और सक्षमता पर सवाल। मुख्य शीर्षक है, केंद्र सरकार की टेस्टिंग एजेंसी टेस्ट में नाकाम रही। इंडियन एक्सप्रेस में नैतिक जिम्मेदारी लेने और उच्च स्तरीय पैनल की स्थापना करने की मुख्य खबर के साथ परीक्षा की तीसरे पक्ष की समीक्षा रिपोर्ट है। इसका शीर्षक है, नीट 2024 के परीक्षा केंद्रों की समीक्षा में जबरदस्त गड़बड़ियां पाई गईं। परीक्षा केंद्रों से सीसीटीवी लापता, स्ट्रांग रूम बिना गार्ड के। उपशीर्षक है, 4000 केंद्रो में से 10 प्रतिशत की समीक्षा। इनमें से 46 प्रतिशत में आवश्यक दो सीसीटीवी कैमरे नहीं थे। यह स्थिति तब रही जब 399 परीक्षा केंद्र एनटीए और समीक्षा करने वाली पार्टी की सहमति से चुने गये। अगर 46 प्रतिशत परीक्षा केंद्रो में जरूरी दो सीसीटीवी नहीं थे तो उनका कारण और दूसरी सुविधाओं की उपलब्धता के बारे में समझा जा सकता है। इससे यह भी समझा जा सकेगा कि परीक्षार्थी क्यों चाहते हैं कि परीक्षा रद्द न हो। द हिन्दू में परीक्षा में हुए घपलों से नाराज छात्रों के प्रदर्शन की एक खबर है। इसके अनुसार, शिक्षा मंत्रालय तथा शिक्षा मंत्री के घर के बाहर प्रदर्शन करने वाले छात्रों में दो दर्जन से ज्यादा को गिरफ्तार कर लिया गया था। प्रदर्शनकारी छात्रों ने कहा कि एनटीए ने उम्मीवारों को निराश किया है और पुनर्परीक्षा अनुचित होगी। व्हीलचेयर का उपयोग करने वाली 25 साल की काव्या मखीजा ने  कहा कि यूजीसी नेट की परीक्षा देने के लिए उसे लाजपत नगर से रोहिणी जाना पड़ा था। परीक्षा कक्ष तक पहुंचने के लिए उसे कई बाधायें पार करनी पड़ी और एक जगह तो उसे चार लोगों ने उठाकर रखा क्योंकि रैम्प उपयोग योग्य नहीं थे। परीक्षा केंद्र में व्हील चेयर नहीं था इसलिए दूसरे शहर से आये परीक्षार्थी को और परेशानी हुई। यहां मुद्दा यह है कि जब परीक्षा केंद्र ही बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं तो एनटीए के गठन का क्या लाभ और उसपर भी तुर्रा यह कि प्रश्नपत्र लीक हो जा रहे हैं। परीक्षा रद्द करने में सरकार को सोचना पड़ रहा है और छात्रों को सुप्रीम कोर्ट से गुहार करनी पड़ रही है।

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