संजय कुमार सिंह
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर बताती है, धंधा लंबे समय से चल रहा हो सकता है और उसी को बचाने की कोशिश चल रही होगी। इसीलिए सरकार अभी भी इमरजेंसी के जंगल में समय काट रही है।
आज की सर्वसम्मत सबसे बड़ी खबर 18वीं लोकसभा की शुरुआत ही है। द हिन्दू को छोड़कर सभी अखबारों में लीड यही है पर शीर्षक अलग-अलग है। कल रात उपलब्ध खबरों से भले मेरे अखबारों के संपादकों को नहीं लगा हो पर अब मुझे लग रहा है कि आज की लीड या टॉप की खबर नीट होनी चाहिये थी। इसके कई कारण हैं।
1. धर्मेंन्द्र प्रधान का शिक्षा मंत्री बने रहना
2. कल सांसद के रूप में उनके शपथग्रहण पर नीट की याद दिलाना
3. 2015 में भी एआईपीएमटी परीक्षा रद्द किया जाना (तब एनटीए और नीट नहीं था),
4. अब रद्द करने से बचने की खुली और बेशर्म कोशिश
5. पहले शिक्षा मंत्री का कहना कि प्रश्नपत्र लीक नहीं हुआ है, (जो झूठ या गलत साबित हो चुका है)
6. फिर बिहार में ही सीमित बताना (रोज नये क्षेत्र जुड़ रहे हैं)
7. बिहार पुलिस का यह आरोप कि एनटीए ने सहयोग नहीं किया,
8. एनटीए के आरएसएस वाले चेयरपर्सन का बना रहना,
9. एनटीए प्रमुख को हटा दिया जाना (बाहरी, आईएएस को क्या फर्क पड़ना है, कृपापात्र तो बना हुआ है)
10. बिहार में सीमित लीक की जांच का काम सीबीआई को सौंपना
11. अब उसका विस्तार झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान में भी पाया जाना
फिर भी अखबारों की खबरें वैसे नहीं हैं जैसे होनी चाहिये थी। सरकार प्रश्नपत्र लीक को छोड़कर यह बताने में लगी है कि कानून कितने सख्त बना रही है। पर मुद्दा यह है कि लीक के जो लक्षण दिख रहे हैं उससे साफ है कि खास लोगों को वे चाहे गुजरात के आम लोग हों या बिहार के सिर्फ पैसे वाले या महाराष्ट्र के किसी खास वर्ग के, सबको विशेष सुविधा मिलती रहेगी और उसे रोकने के इंतजाम करना तो छोड़िये वह मुद्दा ही नहीं है। इस संबंध में आज टाइम्स ऑफ इंडिया में अच्छी खबर है। उसकी और नीट पर आज छपी दूसरी खबरों की चर्चा लीड की चर्चा के बाद।
हालांकि, आज नीट पर जो खबरें छपी हैं उनसे साफ है कि प्रश्नपत्र लीक नहीं हुआ है – कहकर सरकार लीक करने वालों को बचाने की कोशिश कर रही है। इससे सरकार अपना चेहरा बचाने की कोशिश कर रही हो या प्रश्नपत्र बेचने से हुई कमाई। भविष्य में भी इस धंधे और इस धंधे में लगे लोगों को बनाये रखने के लिए भी ऐसा किया जा रहा हो सकता है। प्रश्नपत्र बेचने और पास कराने का धंधा पुराना है यह टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर से साफ है। वैसे भी प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर मौन साध रखा है कार्रवाई जो हुई है वह सिर्फ दिखाने के लिए। उसमें भी उसे नहीं हटाया गया है जिसे हटाया जाना चाहिये। इसलिए कल उस पर बात नहीं की और 49 साल पुरानी इमरजेंसी की बात की। खरगे ने अघोषित इमरजेंसी की बात की लेकिन अखबारों में यह वैसे नहीं है जैसे नवोदय टाइम्स में।
समर्थक मीडिया ने नीट और उसकी गंभीरता को पहले पन्ने से लगभग गायब कर दिया और इमरजेंसी पर उच्च विचार को तान दिया है। अमर उजाला सबसे उदार है। इतना ही नहीं, विपक्ष ने 10 साल के अघोषित इमरजेंसी की याद दिलाई तो उसके समर्थन में तथ्य पेश करने की बजाय उसकी उपेक्षा की गई है। नवोदय टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस अपवाद हैं। आज के अखबारों में मुझे सबसे अच्छा पहला पन्ना नवोदय टाइम्स का लगा। खबरों का चयन और प्रस्तुति दोनों शानदार है। मेरा मानना है कि पहले पन्ने पर विज्ञापन नहीं हो तो इसकी गुंजाइश बनती है और तब कुछ अच्छा करने का मन बनता है। वैसे, अखबार बनाते समय विज्ञापन के बाद बची खाली जगह को भरना हो तो उसका असर पूरे अखबार पर पड़ता है। मुझे याद है, बचपन में अखबारों के पहले पन्ने पर एक ही विज्ञापन होता था।
नवोदय टाइम्स के पहले पन्ने की आज की लीड का शीर्षक है, पहले दिन हंगामेदार सत्र की झलक। उपशीर्षक है, “18वीं लोकसभा के पहले सत्र की पहली बैठक सोमवार को शुरू हुई। कार्यवाही शुरू होते ही सदन के नेता होने के नाते पीएम मोदी ने सबसे पहले शपथ ली। इस दौरान राहुल गांधी समेत विपक्ष के सदस्य संविधान की प्रति लेकर खड़े थे। संविधान और आपातकाल जैसे मुद्दों पर पक्ष विपक्ष ने अपने कड़े तेवर दिखाये जिससे साफ हो गया कि सत्र के आगामी दिन हंगामेदार हो सकते हैं।”
इसके साथ दो कॉलम की दो खबरें हैं। पहली का शीर्षक है, “आपातकाल लोकतंत्र पर लगा काला धब्बा: मोदी”। उपशीर्षक है – कहा, सबकी सहमति से चलने का प्रयास करेगी सरकार। दूसरी खबर का शीर्षक है, मोदी 10 साल के अघोषित आपातकाल को भूले खरगे। उपशीर्षक है – बोले, सरकार को मौजूद मु्दों पर ध्यान देने की जरूरत।
अमर उजाला में पांच कॉलम की लीड का शीर्षक है, आपातकाल लोकतंत्र पर काला धब्बा, जनता संकल्प ले …ताकि कोई फिर हिम्मत न करे मोदी। दो लाइन के इस शीर्षक के साथ उपशीर्षक है, पीएम का पहले ही दिन कांग्रेस पर तीखा हमला, यह भी दोहराया – सरकार के लिए बहुमत मगर देश के लिए सहमति जरूरी। खरगे ने जो कहा उसे अमर उजाला ने दो कॉलम से भी कम में छापा है। शीर्षक है, खरगे बोले – आपने तो दस साल से लगा रखा है घोषित आपातकाल। मुझे लगता है कि यह छोटी बात नहीं है और मोदी अगर 50 साल बाद भी इमरजेंसी को नहीं भूले हैं तो उन्हें याद दिलाया जाना चाहिये कि अघोषित इमरजेंसी में क्या हो रहा है।
उदाहरण के लिए तब मीसा था तो अब पीएमएलए है और तब अगर अकारण गिरफ्तारियां हुई थीं तो अब कंप्यूटर में सबूत प्लांट करके गिरफ्तार करने के उदाहरण हैं। विकलांग प्रोफेसर को 10 साल जमानत नहीं मिलने और अंत में बेदाग छोड़ दिये जाने के मामले हैं। छात्र नेता की जमानत की अपील पर एक साल तक सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई नहीं हो पाने और उसके जेल में ही रहने जैसे उदाहरण हैं। ऐसा नहीं है कि अघोषित इमरजेंसी में आम लोगों को ही परेशान किया गया है और नेताओं को बख्श दिया गया है। मैंने एक खबर देखी कि जिसमें राजनाथ सिंह ने कहा था कि उन्हें 18 महीने जेल में रखा गया। आप जानते हैं कि इमरजेंसी 21 महीने रही थी और अगर राजनाथ सिंह 18 महीने जेल में रहने को याद कर रहे हैं तो बिना इमरजेंसी मनीष सिसोदिया को जेल में रहते 16 महीने हो गये हैं।
अरविन्द केजरीवाल का मामला देख ही रहे हैं। निचली अदालत से जमानत हो गई तो जज की आलोचना की गई। हाई कोर्ट ने बिना आदेश स्टे लगा दिया और फैसला सुरक्षित रख लिया है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी असामान्य कहा है। यही नहीं, इंदिरा गांधी के मामले में हाईकोर्ट का ही आदेश अनूठा जबरदस्त था। कुछ-कुछ वैसा जैसा केजरीवाल के मामले में है। जानने वाले जानते हैं। फिर भी चुनाव हुए तो सबको समान मौका मिला पर अभी विपक्षी नेताओं को जेल में रखकर, कांग्रेस का खाता फ्रीज करके चुनाव हुए और सुप्रीम कोर्ट ने एक, केजरीवाल को सशर्त जमानत दी तो केंद्रीय गृह मंत्री ने विशेष सुविधा मिलने का आरोप लगा दिया। मुख्यमंत्री को जमानत नहीं मिल रही है – मीसा कानून नहीं है तब भी। अमर उजाला के लिये यह सब महत्वपूर्ण नहीं है। प्रधानमंत्री ने जो कहा उसे पूरी प्रमुखता दी गई है।
इंडियन एक्सप्रेस में लीड पांच कॉलम में है। शीर्षक है, 18वीं सोकसभा शुरू हुई। इसके साथ दो कॉलम की दो खबरें हैं। सिंगल कॉलम की तीसरी खबर का शीर्षक है, एक दशक बाद संस में विपक्ष संख्या में और आवाज के साथ। दो कॉलम की खबरों का शीर्षक है, शासन के लिए सहमति जरूरी, सबको साथ लेकर चलने का लक्ष्य प्रधानमंत्री। दूसरी खबर का शीर्षक है, भाजपा की अघोषित इमरजेंसी पूरी , संविधान की रक्षा करेंगे।
हिन्दुस्तान टाइम्स में लीड का शीर्षक है, शपथग्रहण और विरोध 18वीं लोकसभा की टकराव वाली शुरुआत की ओर। एक खबर का शीर्षक है, लोग काम चाहते हैं, नारे नहीं। द टेलीग्राफ की खबर के अनुसार इसपर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि इसे आप खुद याद रखिये। यह एकदम आप पर लागू होता है। अखबार ने लिखा है कि मोदी ने जो ज्ञान लोगों को दिया था उसे खरगे ने उन्हीं पर लागू कर दिया। हिन्दुस्तान टाइम्स ने दूसरा शीर्षक लगाया है, पहले दिन के आंदोलन में इंडिया नीट, संविधान पर केंद्रित रहा।
द टेलीग्राफ का फ्लैग शीर्षक है, 18वीं लोकसभा शुरू हुई तो मजबूत इंडिया ने संवैधानिक एजंडा पारिभाषित किया। मुख्य शीर्षक है, जनता का, जनता के लिए और इस किताब के अनुसार। मोदी जी की सलाह उन्हीं को वापस देने की खबर यहां सिंगल कॉलम में है। शीर्षक है, खरगे ने मोदी की सलाह उन्हीं को वापस दी। टेलीग्राफ में नीट की खबर सिंगल कॉलम में है। इंडियन एक्सप्रेस में यह दो कॉलम में है। शीर्षक है, जांच वाले स्कूल में प्रश्नपत्र वाले बक्से का डिजिटल ताला नहीं खुला, कटर का उपयोग किया गया। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह दो कॉलम की खबर है और शीर्षक है, सीबीआई ने सबूत इकट्टा करना शुरू किया, नीट-यूजी के और भी मामले हाथ में लिये। अमर उजाला में यह तीन कॉलम में है। शीर्षक है, सीबीआई ने पांच मामले हाथ में लिये एनटीए अधिकारी भी जांच के दायरे में। नीट-यूजी : बिहार, गुजरात व राजस्थान में दर्ज हैं ये मामले। सिंगल कॉलम की दो खबरों का शीर्षक है, महाराष्ट्र से भी जुड़े तार प्रधानाध्यापक गिरफ्तार और आरोपियों को दिल्ली ला सकती है सीबीआई।
नवोदय टाइम्स ने नीट की कई खबरें एक साथ बॉक्स में छापी हैं। ऊपर से शुरू करके नीचे आधे से ज्यादा तक। हालांकि इसमें केंद्र के नये कानून का प्रचार टॉप पर है जो अमर उजाला में अंदर होने की सूचना भी इतनी प्रमुखता से नहीं दी गई है। नरेन्द्र मोदी की सरकार सख्त कानून को जनहित की तरह पेश करती है जबकि इसका दुरुपयोग करके कानून की आड़ में विरोधियों से हिसाब बराबर र रही है। नवोदय टाइम्स की दो और खबरें भी दूसरे अखबारों में हैं पर सबको एक साथ छापना अच्छा लग रहा है। इसमें ममता बनर्जी का दावा भी है कि परीक्षा का जिम्मा राज्यों को मिले। इसके साथ शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान के शपथ ग्रहण के दौरान नीट के नारे लगे – यह खबर भी दो कॉलम में है।
द हिन्दू में आज भी नीट की खबर लीड है। संसद सत्र की शुरुआत की खबर दो कॉलम में है। शीर्षक है, सरकार संसद में सहमति के लिए काम करेगी : मोदी। नीट की खबर का शीर्षक है, नीट मामले में महाराष्ट्र में चार के खिलाफ मामला दर्ज, इनमें दो शिक्षक हैं। पुलिस के अनुसार एक शिक्षक को गिरफ्तार कर लिया गया है जबकि दूसरे से पूछताछ चल रही है। आरोप है कि इन लोगों ने मनी ट्रेल से जुड़े व्यक्ति, कोंगलवार के साथ कुछ छात्रों के हॉल टिकट डीटेल साझा किये थे।
टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड वही है जो बाकी अखबारों में है। इमरजेंसी हमें संविधान की रक्षा की याद दिलाती है। इंट्रो है, विपक्षी सांसदों ने स्टैचू बुक (संविधान) की किताब ले रखी थी। यहां बीजद के राज्यसभा सदस्यों कों मजबूत विपक्ष बने रहने की नवीन पटनायक की एक सलाह भी है। नड्डा राज्य सभा में नेता होंगे और प्रोटेम स्पीकर का विरोध जैसी खबरें हैं। इसके ठीक नीचे नीट की खबर है और इसका शीर्षक है, नीट का एक और गंदा राज? अनजाने केंद्र से दूसरी कोशिश उम्मीदवार का रैंक तेजी से बढ़ता है।
इसमें उदाहरण देकर बताया गया है कि 2022 में जिसका रैंक छह अंकों में था वह अपनी दूसरी कोशिश में 8,000 रप आ गया। दो लाख से ऊपर और फिर 8000। 20 साल की यह लड़की मुंबई में पढ़ रही है। इसी तरह, 2022 में एक उम्मीदवार को 10 लाख से नीचे का स्थान मिला था। 2023 में दूसरी बार परीक्षा देने पर उसका स्थान 13,000 हो गया। दूसरी बार सफलता मिलने की यह प्रवृत्ति जानकारों के लिए यह चौंकाने वाली बात है लेकिन इसके साथ रहयस्य यह है कि इनका परीक्षा केंद्र भी बदल जाता है और किसी छोटे शहर का कोई अनजाना सा केंद्र होता है। इसबार गुजरात का गोधरा ऐसी ही जगहों में रहा है। खबर में दिलचस्प विवरण है लेकिन प्रधानमंत्री के लिए इमरजेंसी महत्वपूर्ण है।