Connect with us

Hi, what are you looking for?

साहित्य

रुख पब्लिकेशंस ने सुशोभित की किताबें छापने से किया इनकार!

सुशोभित-

नुराग वत्स के ‘रुख़ पब्लिकेशंस’ से मेरा पूर्ण सम्बंध विच्छेद हो गया है। इसे हिन्दी के पाठकों के लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण समाचार माना जाना चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

रुख़ से अभी तक मेरी तीन प्रशंसित किताबें आई थीं- विश्व साहित्य पर ‘दूसरी क़लम’, विश्व सिनेमा पर ‘देखने की तृष्णा’ और फ़ुटबॉल पर ‘मिडफ़ील्ड’- तीनों ही रुख़ ने ‘डिसकंटिन्यू’ कर दी हैं और अपनी वेबसाइट से उन्हें हटा लिया है। इनमें से ‘दूसरी क़लम’ और ‘देखने की तृष्णा’ के पहले संस्करण समाप्त हो चुके थे और दूसरे, परिवर्द्धित संस्करणों पर काम चल रहा था। ‘मिडफ़ील्ड’ की कुछ प्रतियाँ अभी शेष थीं।

रुख़ से मेरी चौथी किताब- जो समान्तर सिनेमा पर एकाग्र थी- प्रेस में जा चुकी थी! उसके कवर छप चुके थे और पुस्तक की प्रिंटिंग भी शुरू हो चुकी थी। उसकी छपाई तत्काल प्रभाव से रुकवा दी गई है। वह किताब अब रुख़ से नहीं आएगी। उसके लिए मैं किसी अन्य प्रकाशक से सम्पर्क करूँगा।

रुख़ से प्रकाशित मेरी तीनों किताबें बहुत सराही गई थीं। अनेक पाठकों ने उन्हें पढ़ा था, उनके आकल्पन और उनकी सामग्री की प्रशंसा की थी। मैंने अनुराग से आग्रह किया था कि ताज़ा विवाद के बाद हम अब आगे साथ काम नहीं पाएँगे, लेकिन इन चार किताबों को पाठकों तक पहुँचाना उनकी ज़िम्मेदारी है। दुर्भाग्य से हमने मित्रतावश कोई लिखित अनुबंध नहीं किया था, वरना अनुराग एकतरफ़ा निर्णय लेकर इन किताबों को ‘डिसकंटिन्यू’ नहीं कर पाते। इन सुंदर पुस्तकों से पाठकों को वंचित करके रुख़ ने हिन्दी साहित्य में ‘कैंसल-कल्चर’ के अभूतपूर्व मानदण्ड स्थापित कर दिए हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

शायद हिन्दी की लेफ़्ट-लिबरल मुख्यधारा इस ‘कारनामे’ के लिए अनुराग की पीठ थपथपाए और उन्हें बधाई दे। लेकिन मेरा प्रश्न यह है कि अनुराग ने ऐसा क्यों किया। अनुराग का कहना है कि वो मेरे जैसे ‘धर्मोन्मादी’ और ‘साम्प्रदायिक’ व्यक्ति से कोई सम्बंध नहीं रखना चाहते हैं।

पहली बात तो यह कि मैं ‘धर्मोन्मादी’ नहीं, ‘धर्म-विरुद्ध’ हूँ। मेरा कोई धर्म नहीं है और इस एथीस्ट-पर्सपेक्टिव से मैं धर्मों की कठोर आलोचना करता हूँ। अतीत में नीत्शे से लेकर बर्ट्रेंड रसेल और लेनिन से लेकर भगत सिंह तक ने यह किया है। यह कोई अपराध नहीं है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दूसरी बात यह है कि मुझे केवल तभी क्यों ‘साम्प्रदायिक’ माना गया, जब मैंने इस्लाम की आलोचना की? तब क्यों नहीं साम्प्रदायिक माना गया, जब हिन्दू धर्म की इतनी आलोचना करता रहा हूँ? इसका उत्तर देना अनुराग और उनके गिरोह की ज़िम्मेदारी है।

कितने आश्चर्य की बात है कि मैंने इसी फ़ेसबुक पर हिन्दू जाति को ‘क्लीव’ और ‘कायर’ कहकर धिक्कारा, चन्द्रयान और राम मंदिर का उत्सव मनाने वालों को फटकारा, नवरात्रि की पशुबलि को राक्षसी अट्‌टहास क़रार दिया, ईश्वरों की कटु आलोचना की, पूजा-पाठ को निरन्तर ढोंग-आडम्बर बताया और प्रधानमंत्री के लिए ‘तू-तड़ाक’ की शैली में लेखन किया- इस सबसे अनुराग वत्स एंड कम्पनी को कभी आपत्ति नहीं हुई। ईदुज्जुहा को ‘पिशाच-पर्व’ कहने पर वह विचलित हो गए, जबकि वह सामूहिक-हत्याकाण्ड राक्षसी-पर्व ही है, मानुषी-पर्व नहीं है। ईदुलफ़ितर को मैं राक्षसी नहीं कहता, ईदे-मिलाद को नहीं, मोहर्रम और रमज़ान को नहीं- केवल बकरीद को ही कहता हूँ। दूसरे वे ‘अल्ला को प्यारी है क़ुर्बानी’ पर बिदक गए, जबकि इस जुमले का इस्तेमाल ख़ुद मुसलमानों के द्वारा सबसे ज़्यादा किया जा सकता है और हज पर मरने वालों को तो वो लोग ख़ुद ही जन्नत-नशीन समझते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अगर मेरी ये टिप्पणियाँ भौंडी थीं, तो केवल इन्हीं टिप्पणियों को भौंडा क्यों समझा गया? दूसरे धर्मों पर की गई टिप्पणियों से हिन्दी समाज का सौमनस्य क्यों नहीं प्रभावित हुआ, इस्लाम की आलोचना से ही क्यों हुआ?

यह दु:खद प्रकरण बताता है कि राजनीति में जो तुष्टीकरण था, वही अब साहित्य में भी इतने गहरे तक पैठ चुका है कि इस्लाम की शान में किसी भी तरह की गुस्ताख़ी हिन्दी मुख्यधारा के द्वारा बर्दाश्त नहीं की जा सकती है। वो किसी हिन्दुत्ववादी को ‘कैंसल’ करें, यहाँ तक समझ आता है, लेकिन मुझ सरीखे बुद्धिवादी, अनीश्वरवादी व्यक्ति और रचनात्मक लेखक को ‘कैंसल’ करने की क्या वजह हो सकती है?

Advertisement. Scroll to continue reading.

अब तो यह आरोप भी निर्मूल सिद्ध हो चुका है कि मैंने अपनी किताब ‘मैं वीगन क्यों हूँ’ में मुसलमानों पर निशाना साधा है। हज़ारों पाठक आज उस पुस्तक को पढ़ रहे हैं और सभी का एक स्वर से कहना है कि इसमें तो हिन्दू-मुसलमान जैसा कुछ भी नहीं है!

रुख़ पब्लिकेशंस से मेरा निष्कासन हिन्दी की दुनिया में ‘कैंसल-कल्चर’ के एक बदनुमा ‘बहिष्कार-अध्याय’ की तरह याद रखा जाना चाहिए!

Advertisement. Scroll to continue reading.

नीचे पढ़ें कुछ अन्य संबंधित खबरें…

“तुमको छापकर मैं बहुत बड़ा जोखिम उठा रहा हूँ!”

Advertisement. Scroll to continue reading.

चर्चा में है सुशोभित की ये नई किताब, क्या भड़ास एडिटर भी ‘वीगन’ हो गए?

मैं वीगन क्यों हूँ!

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group_one

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement