विष्णु नागर-
आज वरिष्ठ कवि और कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल का 84वां जन्मदिन है। उन्हें बहुत- बहुत शुभकामनाएं।
1971 से उन्हें कुछ दूर से और 1974 से उन्हें नजदीक से जानता रहा हूं। वह अपने समय के बेहद खूबसूरत लोगों में रहे हैं। अभी भी इसकी झलक उनमें मिल जाएगी। वह अत्यंत कोमलकांत भी हैं। उनकी सफलताएं -असफलताएं सबके सामने हैं। सबसे पहले वह कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। कहानियां लिखीं। एक उपन्यास भी लिखा। ‘दिनमान ‘से जुड़े तो समकालीन कला पर प्रभूत लेखन किया। ‘दिनमान’ के बाद राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पत्रिका रंग प्रसंग से संपादक के रूप में जुड़े तो रंगकर्म से भी उनका नाता गहरा हुआ। संगीत नाटक अकादमी की पत्रिका ‘संगना’ से भी वह जुड़े। कला के विभिन्न अनुशासनों से उनका कम अधिक नाता रहा है।
पिछले वर्षों में उन्होंने अपनी एक बेटी को खोया, पत्नी ज्योति जी को खोया पर जीवन के प्रति उनका उत्साह कम नहीं हुआ। उन्होंने एक बच्ची को गोद लिया और जल्दी ही उसका विवाह होनेवाला है। वह घुमक्कड़ भी गजब के हैं और लिक्खाड़ भी। संभवतः आज भी रोज कुछ न कुछ, किसी न किसी के लिए लिखते हैं। आयोजनों में शरीक होते हैं। घूमने का वह कोई न कोई अवसर निकाल लेते हैं। निरंतर गतिमान रहते हैं। उनके फेसबुक पेज से जाना जा सकता है कि वह कब, कहां हैं। दिल्ली में होकर भी वह अपने घर में हों, यह जरूरी नहीं। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सदस्य के नाते उसके अतिथिगृह में भी वह रहा करते हैं।
व्यक्तिगत रूप से वह आज जो हो रहा है, उससे कभी कभी बेचैन भी दिखाई देते हैं मगर वह अपना चैन खो देने वाले लोगों में नहीं हैं। जब तक जीवन है, खुश और सुखी रहना उनका मूलमंत्र है।
उनकी एक कविता मुझे बहुत अधिक पसंद है, जो सांप्रदायिक उन्माद के विरुद्ध है:
उन्माद
उन्माद कभी ज्यादा देर तक नहीं
ठहरता,
यही है लक्षण उन्माद का
बीजों में, पेड़ों में, पत्तों में नहीं होता
उन्माद
आँधी में होता है
पर वह भी ठहरती नहीं
ज्यादा देर तक
जब हम होते हैं उन्माद में
देख नहीं पाते फूलों के रंग
जैसे कि वे हैं
उतर जाता उन्माद नदी का भी
पर जो देखता है नदी का उन्माद भी
वह उन्माद में नहीं होता
उन्माद सागर का होता है
पर वह भी नहीं रहता
उन्माद में बराबर।
सूर्य और चन्द्र में तो होता ही
नहीं उन्माद,
होता भी है तो ग्रहण
जो हैं उन्माद में
उन्हें आएँगी ही
नहीं समझ में यह पंक्तियाँ
प्रतीक्षा में रहेगी
कविता यह
उन्माद के उतरने की।