कार्तिक समाधिया-
रामोजी राव नहीं रहे। ख़बर कुछ रोज पहले न्यूज नोटिफिकेशन से मोबाइल पर मिली। भारतीय सिनेमा को उसकी गैलक्सी देने का श्रेय उन्हीं को जाता है। रामोजी ही पहले पत्रकार रहे जिन्होंने भारतीय टीवी को उसका लोकल धर्म और उसका बिजनेस समझाया। एक अस्सी को पार कर चुका शख्स, जो रोज टाइमली दफ्तर की मीटिंग लेते और ऑफिस में आते। एक, दो हज़ार एकड़ का परिसर कितने करीने से रामोजी राव ने बनाया है। एक गंभीर शो बिजनेस की नींव, जिसको हिलाना आसान नहीं है। जहां नजर डालो ऐसा लगता कि कोई नब्बे के दशक की फिल्म का अधूरा सीन हो, या अस्सी के दशक की कोई फिल्म का पत्थर यहीं से गिरा होगा।
रामोजी फिल्म सिटी देकर दुनिया के सामने रामोजी ने अनोखा दस्तरखान पेश किया, जिसपर पत्रकार भी अपनी छाप छोड़ सके और फ़िल्मों के बड़े बड़े नाम भी। साउथ फ़िल्मों के NTR और रामोजी की दोस्ती की ही सफ़लता ने हैदराबाद में विस्तार लिया और एक ब्रह्मांड खड़ा कर दिया। रामोजी की कहानी लिखने के लिए किसी भी लेखक को काफी मेहनत करनी पड़ सकती है।
मीटिंगों में रामोजी अगर किसी राज्य के एडिटर से कोई सवाल पूछे तो बहुत गूढ़ सवाल पूछते थे। जैसे मध्य प्रदेश में एक बीघा में कितने वर्ग मीटर होता है? सवाल अंग्रेजी में होगा, वजह तेलगु भाषी होने के कारण। अब अचानक कोई माहिर ही इसका जवाब दे पाएगा, लेकिन रामोजी के ये सवाल पत्रकार की बौद्धिकता पर सवाल उठाते नजर आते हैं। जो एक सर्कस के मास्टर का ट्रीटमेंट है, जो कुछ न कुछ सिखाता मिलता।
शो बिजनेस को खड़ा कर देने का नाम और मीडिया इंडस्ट्री के टीवी के पीतांबर होने के लिए जाने जाओगे। ETV के चैनल गांव गांव में अपने लोकल कंटेंट से ऐसे लोकप्रिय हुए कि फिर हर प्राइवेट चैनलों को अपनी एलिट न्यूज से झुकना पड़ा। जनता को कई तरह की भाषा की News TV देने का रामोजी राव को ही श्रेय जाता है। फ़िल्मों का सिपहसालार चला गया। पत्रकारों का सम्राट चला गया।
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